ईर्ष्या यानि Jealousy
ईर्ष्या एक भाव है। किसी को अपने से अधिक उन्नत, संपन्न या सुखी देखकर मन में होनेवाला वह कष्ट या जलन जिसके साथ उस व्यक्ति को वैभव सुख आदि से वंचित करके स्वयं उसका स्थान लेने की अभिलाषा लगी रहती है। ईर्ष्या तुलना है। और हमें तुलना करना सिखाया गया है, हमनें तुलना करना सीख लिया है, हमेशा तुलना करते हैं। किसी और के पास ज्यादा अच्छा मकान है, किसी और के पास ज्यादा सुंदर शरीर है, किसी और के पास अधिक पैसा है, किसी और के पास करिश्माई व्यक्तित्व है। जो भी तुम्हारे आस-पास से गुजरता है उससे अपनी तुलना करते रहो, जिसका परिणाम होगा, बहुत अधिक ईर्ष्या की उत्पत्ति। तुलना बहुत ही मूर्खतापूर्ण वृत्ति है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अनुपम और अतुलनीय है। एक बार यह समझ तुम में आ जाए, ईर्ष्या गायब हो जाएगी। प्रत्येक अनुपम और अतुलनीय है। तुम सिर्फ तुम हो: कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं हुआ, और कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं होगा। और न ही तुम्हें भी किसी और के जैसा होने की जरुरत है। इसलिए तुलना की कोई जगह नहीं होनी चाहिये और अगर तुलना करनी ही है तो अपने से नीचे वाले से तुलना करो क्योंकि उनको उनको देखकर हमे जलन नहीं होती बल्कि महसूस होता है कि हमारे पास तो बहुत कुछ है।
ईर्ष्या एक इस भाव जो दूसरों से ज्यादा खुद को जलती है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर अपने आपको ईर्ष्या की आग में ना जलाएं। ईर्ष्या में मुख्य रूप से एक अपूर्णता का भाव छिपा होता है। यदि आप अपने जीवन में संतोष और संपूणता का अनुभव करेंगे तो आपके जीवन में ईर्ष्या या जलन का कोई स्थान नहीं होगा। इसलिए अपने जीवन में सुख और आनंद को जगह दीजिये। यदि आप आनंद के भाव से पूरी तरह भरे हों, तो आपके भीतर किसी के भी प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं होगा।
जीवन एक कविता
ईर्ष्या एक भाव है। किसी को अपने से अधिक उन्नत, संपन्न या सुखी देखकर मन में होनेवाला वह कष्ट या जलन जिसके साथ उस व्यक्ति को वैभव सुख आदि से वंचित करके स्वयं उसका स्थान लेने की अभिलाषा लगी रहती है। ईर्ष्या तुलना है। और हमें तुलना करना सिखाया गया है, हमनें तुलना करना सीख लिया है, हमेशा तुलना करते हैं। किसी और के पास ज्यादा अच्छा मकान है, किसी और के पास ज्यादा सुंदर शरीर है, किसी और के पास अधिक पैसा है, किसी और के पास करिश्माई व्यक्तित्व है। जो भी तुम्हारे आस-पास से गुजरता है उससे अपनी तुलना करते रहो, जिसका परिणाम होगा, बहुत अधिक ईर्ष्या की उत्पत्ति। तुलना बहुत ही मूर्खतापूर्ण वृत्ति है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अनुपम और अतुलनीय है। एक बार यह समझ तुम में आ जाए, ईर्ष्या गायब हो जाएगी। प्रत्येक अनुपम और अतुलनीय है। तुम सिर्फ तुम हो: कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं हुआ, और कोई भी कभी भी तुम्हारे जैसा नहीं होगा। और न ही तुम्हें भी किसी और के जैसा होने की जरुरत है। इसलिए तुलना की कोई जगह नहीं होनी चाहिये और अगर तुलना करनी ही है तो अपने से नीचे वाले से तुलना करो क्योंकि उनको उनको देखकर हमे जलन नहीं होती बल्कि महसूस होता है कि हमारे पास तो बहुत कुछ है।
ईर्ष्या एक इस भाव जो दूसरों से ज्यादा खुद को जलती है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर अपने आपको ईर्ष्या की आग में ना जलाएं। ईर्ष्या में मुख्य रूप से एक अपूर्णता का भाव छिपा होता है। यदि आप अपने जीवन में संतोष और संपूणता का अनुभव करेंगे तो आपके जीवन में ईर्ष्या या जलन का कोई स्थान नहीं होगा। इसलिए अपने जीवन में सुख और आनंद को जगह दीजिये। यदि आप आनंद के भाव से पूरी तरह भरे हों, तो आपके भीतर किसी के भी प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं होगा।
जीवन एक कविता
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